माँ तू भी ना, क्या कमाल करती है जो बात कभी कही नही जो बात मन में दबी रही वो बात भी मेरी तू खूब समझती है माँ तू भी ना, क्या कमाल करती है ख़ुद कितनी थकान हो या पूरा बदन बेजान हो मेरी हर उलझन तुझे बेहाल करती है माँ तू भी ना, क्या कमाल करती है तेरे सपनों और ख़ुशियो का तुझे कोई शिकवा नहीं मेरे सपनों की ख़ातिर रोज़ लड़ा करती है माँ, तू सचमुच कमाल करती है! - प्रवीण
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